देहरादून के ‘कुकरेती मोमो’ वाले अंकल: बीमारी से जंग, हौसले से संग एक प्लेट मोमो में छिपी है ज़िंदगी की सीख
देहरादून की खूबसूरत वादियों में जब आप रिंग रोड की ओर बढ़ते हैं, तो 6 नंबर पुलिया के पास एक छोटा-सा ठेला आपका ध्यान खींच लेता है। ठेले पर लिखा है “कुकरेती मोमो”। दूर से देखने पर यह बस एक आम फूड स्टॉल लगता है, लेकिन जब आप इसके पीछे की कहानी जानेंगे, तो आपकी आंखें नम हो जाएंगी और दिल गर्व से भर जाएगा।
इस ठेले के मालिक हैं कुकरेती जी, जो किसी फिल्मी हीरो से कम नहीं। वे गंभीर ब्रेन ट्यूमर से पीड़ित हैं, लेकिन उन्होंने बीमारी को अपनी ज़िंदगी की रफ़्तार पर ब्रेक नहीं लगाने दिया। जब डॉक्टरों ने आराम करने की सलाह दी, तब उन्होंने ठेला लगाने का फैसला किया। उनके लिए यह सिर्फ रोज़गार नहीं, बल्कि ज़िंदगी से जंग लड़ने का तरीका बन गया।
कुकरेती जी कहते हैं, “बीमारी आई है, पर रुकने का वक्त नहीं है। अगर मैं हार मान लूंगा, तो मेरे बच्चे क्या सीखेंगे?” इस एक वाक्य में उनकी पूरी ज़िंदगी का दर्शन छिपा है। उनके शब्द सुनकर यह एहसास होता है कि सच्ची ताकत शरीर में नहीं, इरादों में होती है।
हर सुबह वे मुस्कुराते हुए अपनी ठेली तैयार करते हैं। भले ही सिर में दर्द रहता हो, लेकिन चेहरे पर कभी शिकन नहीं आती। उनके हाथ के बने मोमो का स्वाद कुछ ऐसा है कि लोग दूर-दूर से सिर्फ वही खाने आते हैं। देहरादून की सर्द हवाओं में जब कुकरेती मोमो की भाप उठती है, तो वह सिर्फ खाने की खुशबू नहीं होती वह मेहनत, उम्मीद और इंसानियत की महक होती है।
जो ग्राहक एक बार यहां आता है, वो सिर्फ मोमो नहीं खाता वो संघर्ष का स्वाद भी चखता है। लोग कहते हैं कि उनके मोमो में सिर्फ स्वाद नहीं, एक कहानी घुली होती है। एक कहानी उस पिता की, जो अपनी बीमारी का रोना नहीं रोता, बल्कि मुस्कुराकर अपने परिवार का भविष्य लिखता है।
स्थानीय लोग बताते हैं कि कुकरेती जी हमेशा सकारात्मक रहते हैं। चाहे बारिश हो या धूप, वे हर दिन अपने ठेले पर मौजूद रहते हैं। कई बार उनके दोस्त या ग्राहक पूछते हैं, “आप आराम कर लीजिए,” तो वे मुस्कुराकर जवाब देते हैं
“आराम करने से पेट नहीं भरता, मेहनत से उम्मीद मिलती है।”
आज सोशल मीडिया पर “कुकरेती मोमो” एक प्रेरणा का प्रतीक बन चुका है। लोग उनकी कहानी साझा कर रहे हैं, वीडियो बना रहे हैं, और दूसरों को भी उनसे मिलने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। कई फूड ब्लॉगर्स और व्लॉगर्स ने भी उनके स्टॉल का दौरा किया है और कहा कि यह सिर्फ एक फूड पॉइंट नहीं, बल्कि मानवता का ठिकाना है।
इस कठिन दौर में, जब लोग ज़रा सी असुविधा में हार मान लेते हैं, कुकरेती जी जैसे लोग हमें याद दिलाते हैं कि जिंदगी की असली खूबसूरती जंग लड़ने में है, जीतने में नहीं। उनका हौसला इस बात का प्रमाण है कि इंसान अगर ठान ले, तो किसी भी मुश्किल को अवसर में बदल सकता है।
समाज के लिए अब यह समय है कि हम सिर्फ कहानी सुनने तक न रहें, बल्कि ऐसे लोगों के साथ खड़े हों। अगर आप देहरादून में हैं, तो रिंग रोड के 6 नंबर पुलिया तक ज़रूर जाएं। एक प्लेट गर्मागर्म मोमो खाइए, और बदले में सिर्फ पैसे नहीं सम्मान और समर्थन दीजिए।
सभी फूड ब्लॉगर्स, व्लॉगर्स और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स से निवेदन है कि इस कहानी को आगे बढ़ाएं। यह सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं, बल्कि हजारों उन लोगों की आवाज़ है जो मुश्किल हालातों में भी हार नहीं मानते।
📍 पता: कुकरेती मोमो, रिंग रोड, 6 नंबर पुलिया के पास, देहरादून, उत्तराखंड।
खुलने का समय: सुबह 11 बजे से रात 9 बजे तक
स्थानीय लोग कहते हैं: “एक बार इनके मोमो खा लिए, तो दिल कहता है — जिंदगी भी ऐसी ही होनी चाहिए, गर्म, सच्ची और मेहनत की खुशबू से भरी।”

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