🌸 पापांकुशा एकादशी व्रत कथा 🌸
एक समय धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा
“हे केशव! आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम और महात्म्य क्या है? कृपया विस्तार से बताइए।”
भगवान श्रीकृष्ण बोले
“हे धर्मराज! यह एकादशी पापांकुशा एकादशी कहलाती है। इस दिन भगवान पद्मनाभ की पूजा होती है। इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य सभी पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त करता है।
जो भक्त इस दिन व्रत करते हैं, उन्हें अमृत तुल्य पुण्य की प्राप्ति होती है। इस व्रत का फल हजारों वर्षों तक किए गए यज्ञ, दान और तपस्या से भी अधिक माना गया है।”
कथा प्रारंभ:
प्राचीन काल में विंध्याचल पर्वत पर क्रोधन नाम का एक शिकारी रहता था।
उसने जीवनभर हिंसा, पाप और पापकर्म किए। वह न तो कभी पूजा करता था और न ही किसी से प्रेमभाव रखता था।
जब मृत्यु का समय आया, तो यमदूत उसे लेने आए। क्रोधन भयभीत होकर रोने लगा।
तभी उसके पिछले जन्मों के कुछ पुण्य जाग्रत हुए और उसी दिन संयोग से पापांकुशा एकादशी थी।
इस व्रत का प्रभाव ऐसा हुआ कि उसके समस्त पाप नष्ट हो गए और यमदूत भी उसका कुछ बिगाड़ न सके।
भगवान विष्णु के पार्षद आए और क्रोधन को अपने साथ विष्णुधाम ले गए।
🌼 व्रत का महत्व 🌼
- पापांकुशा एकादशी व्रत करने से करोड़ों पाप नष्ट हो जाते हैं।
- मृत्यु के समय यमदूत पास नहीं आते।
- व्रती को स्वर्ग और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- जो व्यक्ति इस व्रत को करता है, उसे लक्ष्मी, आयु, पुत्र और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
इस प्रकार पापांकुशा एकादशी व्रत कथा यह सिखाती है कि चाहे इंसान ने जीवनभर पाप किए हों, लेकिन यदि वह ईमानदारी और श्रद्धा से इस व्रत को करता है तो भगवान विष्णु उसे अपने धाम में स्थान देते हैं।

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