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करोड़ों की दौलत, रिटायर्ड एएसआई… फिर भी बुढ़ापे में अकेले! बेटों की उपेक्षा बनी सबसे बड़ा दर्द |
करोड़ों की संपत्ति के मालिक, रिटायर्ड एएसआई शिवदयाल बुढ़ापे में अकेले बेटों की उपेक्षा बनी सबसे बड़ा दर्द
यह कहानी हमारे समाज की उस सच्चाई को सामने लाती है जिसे हम अक्सर नज़रअंदाज़ कर देते हैं। करोड़ों की संपत्ति के मालिक और पुलिस विभाग से एएसआई पद से रिटायर्ड हो चुके शिवदयाल आज अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में अकेलेपन और उपेक्षा का बोझ ढो रहे हैं। 90 साल की उम्र में जहाँ उन्हें अपने परिवार का सहारा और सेवा मिलनी चाहिए, वहीं उन्हें खुद अपने हाथों से खाना पकाना पड़ रहा है।
संपत्ति है लेकिन सहारा नहीं
शिवदयाल का जीवन किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं। उन्होंने अपनी नौकरी और जीवन का हर पल अपने परिवार की खुशियों के लिए समर्पित किया। बच्चों को अच्छी परवरिश दी, पढ़ाई करवाई और जीवन में स्थापित किया। आज उनके तीनों बेटे आर्थिक रूप से सक्षम और सम्पन्न हैं, लेकिन जब अपने पिता की देखभाल की बारी आई तो सबने मुँह मोड़ लिया।
अकेलेपन का संघर्ष
90 साल की उम्र में जहाँ लोग सहारे पर चलते हैं, वहीं शिवदयाल खुद अपना खाना बनाते हैं और अपने कामकाज करते हैं। हाल ही में उनकी आँखों की रोशनी कमजोर होने लगी, जिसके बाद मजबूरी में उनका एक नाती उनके साथ रहने आया और उनकी देखभाल कर रहा है। लेकिन सवाल यह है कि जिन तीन बेटों के लिए उन्होंने जीवन खपा दिया, वे आज क्यों अपने पिता को इस हालत में अकेला छोड़ बैठे हैं?
पिता का दर्द
शिवदयाल का दर्द उनके शब्दों से साफ झलकता है। वे कहते हैं
“मैंने जीवन भर अपने बच्चों की खुशियों के लिए सब कुछ किया। आज उनके पास धन की कोई कमी नहीं है। लेकिन मेरी सेवा करने के लिए कोई तैयार नहीं।”
उनके शब्द सुनकर हर कोई भावुक हो जाता है। यह बयान न सिर्फ़ उनकी पीड़ा को दर्शाता है बल्कि समाज में पनप रही संवेदनहीनता को भी उजागर करता है।
करोड़ों की संपत्ति किस काम की?
शिवदयाल की इस हालत को देखकर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है वह धन, वह संपत्ति, जिसकी चाह में इंसान पूरी जिंदगी खपा देता है, अगर बुढ़ापे में अपने ही संतान का सहारा न मिल सके तो उसका क्या मूल्य है? यह घटना एक सच्चाई को उजागर करती है कि दौलत इंसान के अंतिम दिनों में काम नहीं आती, काम आता है तो केवल परिवार का साथ और बच्चों की सेवा।
समाज के लिए सबक
शिवदयाल का अकेलापन केवल उनकी व्यक्तिगत कहानी नहीं है, बल्कि समाज के लिए एक आईना है। यह कहानी हमें सोचने पर मजबूर करती है कि आधुनिकता और भौतिकता की दौड़ में कहीं हम अपने सबसे बड़े कर्तव्य माता-पिता की सेवा को तो नहीं भूल रहे?
धन और सुख-सुविधाओं की कोई कमी न होने के बावजूद जब माता-पिता को इस उम्र में अकेलापन और उपेक्षा झेलनी पड़ रही है तो यह केवल एक परिवार की नहीं, पूरे समाज की विफलता है।
एएसआई पद से सेवा देकर रिटायर हुए शिवदयाल आज करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं, लेकिन वे कहते हैं कि “यह सब संपत्ति किसी काम की नहीं, अगर अपने ही साथ न दें।”
उनकी जिंदगी हमें यह सीख देती है कि जीवन का सबसे बड़ा धन पैसा नहीं, बल्कि परिवार का साथ, सम्मान और प्यार है।

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