![]() |
गैरसैंण की रहने वाली गर्भवती सुशीला बहन — समय पर इलाज न मिलने से मां और अजन्मे बच्चे दोनों की मौत। |
गर्भवती सुशीला बहन की मौत: कौन है जिम्मेदार? उत्तराखंड के सिस्टम पर उठे सवाल
उत्तराखंड के गैरसैंण क्षेत्र से एक बेहद दर्दनाक खबर सामने आई है। सुशीला बहन, जो गर्भवती थीं, समय पर उपचार और उचित स्वास्थ्य सुविधा न मिलने के कारण अपनी जान गंवा बैठीं। केवल सुशीला ही नहीं, उनके गर्भ में पल रहे मासूम बच्चे ने भी दुनिया में आने से पहले ही दम तोड़ दिया। इस घटना ने पूरे राज्य को झकझोर दिया है और यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर कब तक गर्भवती महिलाएँ और मासूम जिंदगियाँ सिस्टम की लापरवाही के कारण मौत के घाट उतरती रहेंगी?
गैरसैंण की सुशीला बहन: अधूरी रह गई जिंदगी
सुशीला बहन उत्तराखंड के गैरसैंण की रहने वाली थीं। गर्भवती होने के बावजूद उन्हें समय पर सही इलाज नहीं मिला। न तो उनके गाँव में कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) ढंग से काम कर रहा था और न ही पास में कोई ऐसी सुविधा थी जहाँ वे आसानी से पहुँच सकें।
जब हालत बिगड़ी, तब उन्हें अस्पताल ले जाने की कोशिश की गई। लेकिन सड़क और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी के कारण उन्हें समय पर इलाज नहीं मिल पाया और रास्ते में ही उनकी मौत हो गई। उनके साथ उनके अजन्मे बच्चे की भी जान चली गई।
सिस्टम की विफलता: कौन देगा जवाब?
सुशीला बहन की मौत कोई पहली घटना नहीं है। यह उन सैकड़ों घटनाओं में से एक है जो हर साल उत्तराखंड के दूरदराज़ पहाड़ी इलाकों में होती हैं।
- सड़क नहीं होने की वजह से गर्भवती महिलाओं को अस्पताल तक पहुँचने में घंटों लग जाते हैं।
- स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी इतनी गंभीर है कि कई जगह डॉक्टर तक उपलब्ध नहीं रहते।
- एंबुलेंस सेवाओं की हालत यह है कि मरीजों को कभी खच्चर, कभी डोली और कभी प्राइवेट गाड़ियों में ले जाना पड़ता है।
25 साल पूरे कर चुका उत्तराखंड राज्य आज भी इस बुनियादी समस्या से जूझ रहा है।
नेताओं के वादे और जनता की हकीकत
राज्य गठन के बाद से अब तक हर सरकार ने “स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने” और “पहाड़ में डॉक्टर और दवाइयाँ पहुँचाने” का वादा किया। लेकिन आज भी सच्चाई यह है कि:
- अधिकांश PHC और CHC खाली पड़े हैं, वहाँ न डॉक्टर हैं और न दवाइयाँ।
- डिलीवरी केस में महिलाओं को मैदानी अस्पतालों का रुख करना पड़ता है।
- नेताओं के भाषण और चुनावी घोषणाएँ तो बहुत होते हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर हालात जस के तस हैं।
भावनात्मक सवाल: आखिर दोषी कौन?
सुशीला बहन की मौत के बाद एक बड़ा सवाल उठता है – आखिर इस मौत की जिम्मेदारी कौन लेगा?
- क्या यह जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन की है जिसने स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध नहीं करवाईं?
- क्या यह जिम्मेदारी राजनीतिज्ञों की है जो वादों तक सीमित रह गए?
- या फिर यह जिम्मेदारी पूरे सिस्टम की है जो 25 साल बाद भी उत्तराखंड को “सक्षम” बनाने में नाकाम रहा?
सुशीला बहन की मौत केवल एक महिला की मौत नहीं, बल्कि यह पूरे राज्य की असफलता और भ्रष्ट व्यवस्था का प्रतीक है।
आँकड़ों की नजर से दर्दनाक हकीकत
स्वास्थ्य मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार, उत्तराखंड में मातृ मृत्यु दर (Maternal Mortality Rate) अभी भी राष्ट्रीय औसत से ऊपर है। खासतौर पर पहाड़ी इलाकों में प्रेग्नेंसी के दौरान महिलाओं की मौत के मामले लगातार सामने आते रहते हैं।
- 40% से अधिक गर्भवती महिलाओं को समय पर एंटीनेटल केयर (ANC) नहीं मिल पाता।
- 30% से ज्यादा डिलीवरी अब भी घर पर बिना डॉक्टर या नर्स के होती है।
- 50% से अधिक मामलों में एंबुलेंस समय पर नहीं पहुँच पाती।
जनता का गुस्सा: “शर्म करो नेताओं”
गैरसैंण की इस घटना के बाद स्थानीय लोगों का गुस्सा फूट पड़ा है। लोगों का कहना है कि:25 साल औचिमर रही यह गुस्सा जायज़ भी है क्योंकि हर चुनाव में स्वास्थ्य और सड़क को मुद्दा बनाया जाता है, लेकिन चुनाव खत्म होते ही सब भूल जाते हैं।
अब क्या होगा?
सुशीला बहन की मौत ने एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर किया है कि क्या उत्तराखंड सचमुच स्वतंत्र राज्य बनने के मकसद को पूरा कर पाया है?
- अगर गर्भवती महिलाएँ अस्पताल तक पहुँचने से पहले ही दम तोड़ दें,
- अगर अजन्मे बच्चों की मौत इस तरह होती रहे,
- अगर जनता नेताओं के भरोसे बार-बार ठगी जाती रहे,
तो यह सवाल उठना लाज़मी है कि आखिर उत्तराखंड की 25 साल की यात्रा का हासिल क्या है?
आगे की राह
सुशीला बहन और उनके अजन्मे बच्चे की मौत पूरे सिस्टम पर करारा तमाचा है। अब वक्त आ गया है कि सरकार और प्रशासन:
- हर गाँव में स्वास्थ्य केंद्रों को सक्रिय करे,
- सड़क और एंबुलेंस सुविधाएँ मजबूत करे,
- और सबसे ज़रूरी, जवाबदेही तय करे ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
क्योंकि अगर आज भी सुधार नहीं किया गया, तो कल फिर कोई और “सुशीला बहन” इस लापरवाही का शिकार बनेगी!

0 Comments