नैनीताल के दिगोली गाँव में विकास का सच – जनता की ज़रूरत या ठेकेदार का फायदा?

“उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले की धारी तहसील के दिगोली गाँव में आज भी मूल रास्तों का निर्माण अधूरा है। जहाँ जनता को पक्के रास्तों की ज़रूरत है, वहाँ पहले से बने खड़ंजे को तोड़कर दुबारा आरसीसी रास्ता बनाया जा रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि असली जरूरत की अनदेखी कर सिर्फ़ मुनाफ़े वाले काम हो रहे हैं। दिगोली गाँव की जनता वर्षों से पक्के रास्तों और बेहतर कनेक्टिविटी की मांग कर रही है, लेकिन अब तक विकास कागज़ों तक ही सीमित है। पूरी रिपोर्ट पढ़ें।”

खड़ंजा बना पड़ा है, बस नाम बदलकर नया काम दिखाया जा रहा है।



दिगोली गाँव की हकीकत: आरसीसी रास्तों के नाम पर दिखावा, लेकिन मूल रास्ते अब भी बदहाल

नैनीताल ज़िले की धारी तहसील का दिगोली गाँव विकास की बजाय उपेक्षा का शिकार

उत्तराखंड के नैनीताल ज़िले की धारी तहसील का एक छोटा-सा गाँव – दिगोली – आज भी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहा है। सरकार और विभाग जहाँ कागज़ों पर विकास के बड़े-बड़े दावे करते हैं, वहीं ज़मीनी हकीकत बिलकुल उलट है। दिगोली गाँव के लोग आज भी पक्के मूल रास्तों के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

गाँव में जहाँ असली ज़रूरत है – जैसे कि खेतों, घरों और मुख्य बाज़ार तक पहुँचने वाले रास्ते – वहाँ काम अधूरा पड़ा है। लेकिन दूसरी ओर, ठेकेदारों और विभाग ने वही जगह चुन ली जहाँ पहले से खड़ंजा (पत्थरों का बना रास्ता) मौजूद था। अब उस पर दोबारा आरसीसी रास्ता डाला जा रहा है। ग्रामीण सवाल उठा रहे हैं कि जब गाँव का असली रास्ता आज भी कीचड़ और दलदल में है, तो क्यों वहाँ काम नहीं हो रहा?

ग्रामीणों का दर्द: “हम मूल रास्तों के लिए तरस रहे हैं”

दिगोली गाँव के ग्रामीणों का कहना है कि सालों से सरकार और पंचायत से मांग की जा रही है कि उनके असली रास्ते बनाए जाएँ।

  • बरसात के समय कीचड़ और दलदल के कारण खेतों और घरों तक पहुँचना मुश्किल हो जाता है।
  • बीमार लोगों को अस्पताल ले जाने में घंटों लगते हैं क्योंकि वाहनों की पहुँच ही नहीं है।
  • छोटे बच्चे और बुज़ुर्ग आए दिन फिसलकर गिरते रहते हैं।
  • गाँव तक सामान लाना-ले जाना भी किसी चुनौती से कम नहीं।

एक बुज़ुर्ग ग्रामीण ने कहा 

“हम आज भी बीमार को चारपाई में डालकर कंधे पर उठाकर अस्पताल ले जाते हैं। यह कैसी आज़ादी और कैसा विकास है?”


एक महिला बोली 

“हमारे घर तक पहुँचने का रास्ता दलदल है। लेकिन सरकार उसी जगह आरसीसी डाल रही है जहाँ पहले से पत्थर का रास्ता था। क्या यह विकास है या सिर्फ़ पैसे की बर्बादी?”



ठेकेदारों का खेल: जहाँ मुनाफ़ा, वहीं काम

ग्रामीणों का आरोप है कि यह पूरा खेल ठेकेदारों का है।

  • जहाँ पहले से खड़ंजा बिछा है, वहाँ केवल सीमेंट डालकर आरसीसी रास्ता बना दिया जाता है।
  • इससे लागत बहुत कम आती है और मुनाफ़ा ज़्यादा मिलता है।
  • असली रास्तों को बनाने में ज़्यादा खर्च और मेहनत है, इसलिए उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है।

गाँव के युवाओं ने कहा 

“ठेकेदार वही काम करता है जिसमें उसे फायदा हो। उसे हमारी समस्या से कोई मतलब नहीं।”

सरकार और विभाग पर सवाल

दिगोली गाँव के लोग पूछते हैं कि सरकार का “सबका साथ, सबका विकास” का नारा क्या सिर्फ़ शहरों तक सीमित है?

  1. पारदर्शिता की कमी:
    • ग्रामीणों को यह तक नहीं बताया गया कि रास्तों के लिए कितना बजट आया और कहाँ खर्च हुआ।
    • ग्राम सभा में कभी चर्चा नहीं हुई।
  2. जनप्रतिनिधियों की चुप्पी:
    • गाँव के प्रतिनिधि चुनाव के समय तो वोट मांगने आते हैं, लेकिन बाद में गाँव की असल समस्याओं पर चुप्पी साध लेते हैं।
    • विधानसभा या ज़िला स्तर पर दिगोली का मुद्दा कभी जोर से नहीं उठाया गया।
  3. बरसात का बहाना:
    • हर साल बरसात का हवाला देकर असली रास्तों का काम टाल दिया जाता है।
    • लेकिन जहाँ आसान काम है, वहाँ बरसात में भी काम हो जाता है।
  4. ऑडिट का अभाव:
    • अब तक जितने भी रास्ते बने हैं, उनकी कभी स्वतंत्र ऑडिट नहीं हुई।
    • अगर हो, तो कई घोटाले सामने आ सकते हैं।

मूल रास्ते क्यों ज़रूरी हैं?

  • गाँव की 70% आबादी खेती करती है। खेतों तक सही रास्ता न होने से फसल खेतों में ही खराब हो जाती है।
  • आपातकालीन स्थिति (बीमारी, गर्भवती महिला, हादसा) में लोगों को अस्पताल तक ले जाना बेहद मुश्किल है।
  • शिक्षा प्रभावित होती है – बच्चे स्कूल तक पहुँचने में कीचड़ और फिसलन से परेशान रहते हैं।
  • बाज़ार से सामान लाना-ले जाना महंगा और कठिन पड़ता है।

दिगोली की वर्तमान स्थिति:

  • सिर्फ़ दिखावटी काम: जहाँ खड़ंजा पहले से है, वहीं आरसीसी रास्ता।
  • असली ज़रूरतें पूरी नहीं हुईं: गाँव के मुख्य रास्ते आज भी दलदल और मिट्टी के हैं।
  • ग्रामीण हताश: सरकार और पंचायत से बार-बार मांग के बावजूद सुनवाई नहीं।

ग्रामीणों की माँग

  1. सरकार गाँव के मूल रास्तों की जियो-टैगिंग कराए।
  2. पहले उन रास्तों को बनाया जाए जिनकी असल में ज़रूरत है।
  3. अब तक बने रास्तों की उच्चस्तरीय ऑडिट हो।
  4. घटिया निर्माण सामग्री इस्तेमाल करने वाले ठेकेदारों पर कार्रवाई हो।
  5. गाँव वालों को हर काम की पूरी जानकारी और हिसाब दिया जाए।

समाधान क्या हो सकता है?

  • जियो-टैगिंग और ड्रोन सर्वे से असली ज़रूरतों की पहचान।
  • गाँव के हर परिवार से पूछकर प्राथमिकता तय करना।
  • हर काम का सोशल ऑडिट गाँव के लोगों की मौजूदगी में होना चाहिए।
  • ठेकेदारों पर सिर्फ़ मुनाफ़े के बजाय जवाबदेही तय हो।
  • जनप्रतिनिधियों को जवाब देना होगा कि गाँव के मूल रास्ते क्यों नहीं बने।

नतीजा

दिगोली गाँव की यह स्थिति बताती है कि सरकार के “विकास” के दावे और असलियत में कितना अंतर है। जहाँ लोगों को आज भी पैदल चलने लायक मूल रास्ता नहीं मिला, वहाँ सिर्फ़ दिखावटी आरसीसी रास्ते डालकर विकास का ढिंढोरा पीटा जा रहा है।

ग्रामीण अब साफ़ कहते हैं 

“हमें दिखावा नहीं, असली विकास चाहिए। हमें वोट लेने के लिए नहीं, जीने के लिए रास्ता चाहिए।”


Disclaimer:
इस लेख का उद्देश्य केवल और केवल दिगोली गाँव की मूलभूत ज़रूरतों और रास्तों की वास्तविक स्थिति को उजागर करना है। इसमें किसी भी राजनीतिक, व्यक्तिगत या व्यावसायिक हित का कोई योगदान नहीं है। यदि इस रिपोर्ट में बताए गए तथ्यों पर किसी संबंधित विभाग या प्रतिनिधि को आपत्ति हो, तो उनका पक्ष भी समान महत्व के साथ प्रकाशित किया जाएगा।

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