मुज़फ्फरपुर: एनएच-27 पर अवैध कब्ज़ा, अंडरपास और चौड़ीकरण का काम ठप

“बिहार के मुज़फ्फरपुर में एनएच-27 पर अवैध कब्ज़े के कारण अंडरपास और चौड़ीकरण का काम रुक गया है। NHAI ने जिलाधिकारी और पुलिस से मदद मांगी है। जानिए पूरा मामला, असर और समाधान।”

सड़क पर अवैध कब्ज़ा… रुका बिहार का विकास!


मुज़फ्फरपुर: एनएच-27 पर अवैध कब्ज़े से अंडरपास और चौड़ीकरण का काम ठप, NHAI ने प्रशासन से मांगी मदद

मुज़फ्फरपुर, बिहार (हाल ही में सामने आया मामला) – बिहार में बुनियादी ढांचे के विकास को लेकर चल रही बड़ी परियोजनाओं में से एक, एनएच-27 का चौड़ीकरण और अंडरपास निर्माण कार्य अवैध कब्ज़े के चलते अटक गया है। मुज़फ्फरपुर के मुशहरी अंचल से होकर गुजरने वाले हिस्से में बड़ी संख्या में लोगों ने सड़क किनारे और यहां तक कि अधिगृहित ज़मीन पर घर और दुकानें बना ली हैं। परिणामस्वरूप, एनएचएआई (राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण) द्वारा चलाए जा रहे निर्माण कार्य पर रोक लगानी पड़ी है।

एनएचएआई के परियोजना निदेशक आशुतोष सिन्हा ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए मुज़फ्फरपुर के जिलाधिकारी (डीएम) और पुलिस अधीक्षक (एसपी) को पत्र लिखकर अवैध अतिक्रमण हटाने के लिए तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है।

क्या है पूरा मामला?

  • मामला मुशहरी अंचल और आसपास के कई मौज़ों का है।
  • यहां एनएचएआई की अधिगृहित ज़मीन पर स्थानीय लोगों ने घर, पक्की दुकानें और अस्थायी निर्माण कर लिए हैं।
  • कई जगहों पर तो सड़क के किनारे सीधे अतिक्रमण कर लिया गया है, जिससे अंडरपास बनाने की जगह ही नहीं बची।
  • रामदयालु से लेकर कच्ची पक्की इलाके तक इस तरह के कब्ज़े तेजी से बढ़े हैं।

एनएचएआई का कहना है कि यदि अब इन निर्माणों को नहीं रोका गया तो भविष्य में पूरी परियोजना की समयसीमा प्रभावित होगी।

अतिक्रमण से क्यों रुका काम?

  1. सुरक्षा खतरा – हाईवे पर बिना अनुमति बनाए गए घर और दुकानें दुर्घटना का बड़ा कारण बन सकती हैं।
  2. तकनीकी बाधा – अंडरपास और सड़क चौड़ीकरण का नक्शा तय है। जहां कब्ज़ा है, वहां मशीनें और कंक्रीट डालने की जगह ही नहीं बची।
  3. कानूनी उलझन – कई लोगों ने अवैध दाखिल-खारिज (mutation) कराकर जमीन को अपनी बताने की कोशिश की है। इससे प्रशासन के लिए अतिक्रमण हटाना कठिन हो रहा है।

प्रशासन से एनएचएआई की अपील

परियोजना निदेशक आशुतोष सिन्हा ने पत्र में लिखा कि:

“एनएच-27 पर चल रहे निर्माण कार्य में अवैध कब्ज़ा बड़ी बाधा बन रहा है। हमने कई बार लोगों को समझाया लेकिन निर्माण कार्य नहीं रुका। अब जिला प्रशासन और पुलिस बल की मदद से ही अतिक्रमण हटाया जा सकता है।”


उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि यदि कार्रवाई में देर हुई तो परियोजना की लागत बढ़ जाएगी और यातायात व्यवस्था लंबे समय तक प्रभावित होगी।

स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार और दलाली का आरोप

  • मुशहरी अंचल कार्यालय पर दलालों और अफसरों की मिलीभगत का आरोप पहले से है।
  • भूमि सुधार मंत्री संजय सरावगी ने भी जांच के आदेश दिए हैं।
  • सीओ (सर्किल ऑफिसर) महेंद्र कुमार शुक्ला के खिलाफ गलत दाखिल-खारिज करने और आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले की जांच चल रही है।

इससे यह साफ होता है कि केवल स्थानीय लोग ही नहीं, बल्कि प्रशासनिक तंत्र में भी भ्रष्टाचार इस समस्या को और गहरा कर रहा है।

जनता की प्रतिक्रिया

स्थानीय नागरिकों का कहना है कि:

  • “हम कई सालों से यहां रह रहे हैं, अब हमें अचानक हटाया जा रहा है।”
  • “अगर जमीन एनएचएआई की थी तो पहले ही कार्रवाई क्यों नहीं हुई?”

वहीं सोशल मीडिया और रेडिट जैसे मंचों पर लोग लिख रहे हैं:

“बिहार में सरकारी जमीन पर कब्ज़ा करना आम बात हो गई है, हर गली-मोहल्ले में यह दिखता है।”


यह स्थिति बताती है कि लोगों की सोच में भी बदलाव की जरूरत है।

परियोजना के लिए संभावित नुकसान

  1. देरी और बढ़ी लागत – निर्माण कंपनियों के मुताबिक, हर महीने की देरी से करोड़ों रुपये अतिरिक्त खर्च जुड़ जाता है।
  2. यातायात पर असर – मुज़फ्फरपुर-बरौनी फोरलेन से रोज़ाना हज़ारों गाड़ियाँ गुजरती हैं। अधूरे अंडरपास और संकरे रास्ते दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ा रहे हैं।
  3. निवेश और विकास पर असर – बिहार सरकार हाईवे और औद्योगिक गलियारों के विकास को लेकर बड़े प्लान बना रही है। लेकिन अतिक्रमण जैसी समस्याओं से निवेशकों का भरोसा घटता है।

विशेषज्ञों की राय

पटना यूनिवर्सिटी के शहरी विकास विशेषज्ञ प्रो. अजय कुमार का कहना है:

  • “बुनियादी ढांचे का विकास तभी सफल होगा जब भूमि अधिग्रहण प्रक्रिया पारदर्शी और समय पर पूरी हो।”
  • “स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार खत्म करना सबसे पहली जरूरत है।”
  • “लोगों को उचित मुआवज़ा देकर और पुनर्वास की योजना बनाकर ही अतिक्रमण हटाया जा सकता है।”

समाधान क्या है?

  1. तत्काल अतिक्रमण हटाओ अभियान – प्रशासन को पुलिस बल और मजिस्ट्रेट की मौजूदगी में ज़मीन खाली करानी होगी।
  2. मुआवज़ा और पुनर्वास – प्रभावित परिवारों को पुनर्वास योजना के तहत वैकल्पिक जगह दी जाए।
  3. ऑनलाइन रिकॉर्ड सिस्टम – गलत दाखिल-खारिज रोकने के लिए ज़मीन रजिस्ट्री और म्यूटेशन पूरी तरह डिजिटल होना चाहिए।
  4. जागरूकता अभियान – लोगों को समझाना होगा कि सरकारी परियोजनाएँ सबके भले के लिए होती हैं।
  5. कड़ी सज़ा – अवैध निर्माण कराने वाले दलालों और अफसरों पर कड़ी कार्रवाई जरूरी है।

निष्कर्ष

मुज़फ्फरपुर का यह मामला केवल एक जिले की समस्या नहीं है, बल्कि यह पूरे बिहार और देश के लिए सीख है। जब तक भ्रष्टाचार, लापरवाही और अवैध कब्ज़े की संस्कृति खत्म नहीं होगी, तब तक कोई भी राष्ट्रीय राजमार्ग या विकास परियोजना समय पर पूरी नहीं हो पाएगी।

एनएचएआई और प्रशासन की संयुक्त कार्रवाई से ही यह समस्या सुलझ सकती है। अगर अब भी देरी हुई, तो आने वाले वर्षों में बिहार का विकास मॉडल और पिछड़ सकता है।

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