‘योगी आय्यद्यानाथ को भी फंसाने का था दबाव’, इस बयान के साथ मामले ने एक नया मोड़ ले लिया। हालिया अदालत की सुनवाई में एक गवाह ने सामने आया है कि उसे कई दिनों तक गैरकानूनी हिरासत में रखा गया और ज़बरदस्ती आरएसएस के नेताओं सहित योगी आदित्यनाथ को फंसाने का दबाव बनाया गया ।
🧾 अदालत की रिपोर्ट – ATS की जांच पर सवाल
नागेश्वर NIA कोर्ट के जज A. K. Lahoti ने विशेष चिंता व्यक्त की कि अधिकांश गवाहों ने अदालत में कहा कि उनके बयान स्वैच्छिक नहीं थे, बल्कि ATS अधिकारियों द्वारा अत्याचार और डर के चलते लिखवाए गए थे। अदालत ने इस प्रकार की व्यवहार पद्धति को गंभीर मानते हुए इसे साक्ष्य की विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह माना ।
🔍 पूर्व ATS अधिकारी का खुलासा – भगवा आतंकवाद थ्योरी
एक पूर्व ATS अधिकारी का दावा है कि उन्हें RSS प्रमुख मोहन भागवत को गिरफ्तार करने का आदेश मिला था, ताकि ‘भगवा आतंकवाद’ की थ्योरी को स्थापित किया जा सके। उनका यह भी कहना था कि इससे उनका लगभग 40 वर्षों का करियर प्रभावित हुआ ।
लेकिन कोर्ट ने इस दावे को ठोस सबूतों के अभाव में खारिज कर दिया है, और स्पष्ट किया कि किसी भी ATS अधिकारी को भागवत की गिरफ्तारी का आदेश नहीं मिला था ।
⚖️ नौ आरोपियों की बरीगी और गवाहों की भूमिका
अंततः कोर्ट ने सात आरोपियों को बरी कर दिया जिसमें साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और कर्नल पुरोहित भी शामिल थे। अदालत ने यह निर्णय गवाहों की ईमानदारी और कथनों में मिल रही विसंगतियों को देखते हुए लिया ।
💬 राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
- तेजी से विषय गरमाइयों: असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि इस जांच को RSS प्रमुख मोहन भागवत को फंसाने के लिए ‘राजनीतिक विच हंट’ में बदला गया था ।
- कोर्ट ने हालांकि संघ प्रमुख को फंसाने की थ्योरी को बिना प्रमाण खारिज कर दिया, जिससे जांच की निष्पक्षता पर भी प्रश्न खड़े हो गए।
🧠 निष्कर्ष
- ये खुलासे दर्शाते हैं कि मालेगांव ब्लास्ट मामले में ATS के तरीकों की जाँचनीयता और विश्वसनीयता पर उँगली उठ रही है।
- गवाहों के पद बदलने और कथनों के बदले जाने की घटना ने अभियोजन पक्ष की पूरी कहानी की कमजोर आधारशिला बना दी।
- कोर्ट की राय साफ़ है: “संदेह आधारित आरोपों पर कोई सजा नहीं हो सकती”—इस कारण सातों अभियुक्त बरी हुए।
✍️ क्या आगे की कहानी?
- आगे की सुनवाई में एनआईए द्वारा की गई स्वतंत्र जांच और गवाहों की सुरक्षा व सचेतना पर ध्यान आवश्यक होगा।
- राजनीतिक वर्गों द्वारा अद्यतन बयान और खुलासों के आधार पर जवाबदेही की मांग की जा सकती है।
- न्यायपालिका और जांच एजेंसियों की प्रक्रिया की पारदर्शिता ही लोगों का विश्वास बहाल कर सकती है।

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