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| दक्ष कार्की अपने माता पिता के साथ बचपन की याद |
पप्पू कार्की की विरासत को संभाल रहे उनके बेटे दक्ष कार्की, पहाड़ की सुरमयी धरोहर अब नई पीढ़ी के हाथों में
उत्तराखंड की धरती अपने लोकगीतों और संगीत परंपराओं के लिए जानी जाती है। यहाँ के पहाड़, नदियाँ और घाटियाँ केवल प्रकृति की सुंदरता का ही प्रतीक नहीं हैं, बल्कि यह लोकसंस्कृति और संगीत के भी जीवंत साक्षी हैं। इन्हीं धरोहरों में एक नाम है लोक गायक पप्पू कार्की का, जिन्होंने अपने जीवनकाल में लोकगायकी को नई पहचान दी और पहाड़ की संस्कृति को जन-जन तक पहुँचाया। आज भले ही वे हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ और उनका संगीत हमेशा जीवित रहेगा।
सबसे बड़ी बात यह है कि उनकी यह विरासत अब उनके बेटे दक्ष कार्की ने संभाल ली है। नन्हीं उम्र में दक्ष ने अपने पिता के सपनों को जीते हुए ऐसा मुकाम हासिल किया है कि पूरे उत्तराखंड ही नहीं, बल्कि देशभर के लोग उन पर गर्व महसूस कर रहे हैं।
पप्पू कार्की: पहाड़ की आवाज़
लोकगायक पप्पू कार्की का जन्म अल्मोड़ा जिले में हुआ था। छोटी उम्र से ही उन्हें संगीत में गहरी रुचि थी। उन्होंने पहाड़ के पारंपरिक गीतों को अपनी मधुर आवाज़ और नए अंदाज़ में गाकर लोकप्रिय बना दिया। चाहे शादी-ब्याह के गीत हों, लोक पर्वों के गीत हों या फिर उत्तराखंड की मिट्टी की खुशबू से भरे गढ़वाली और कुमाऊँनी गीत – पप्पू कार्की की आवाज़ ने हर जगह जादू बिखेरा।
उनके गीत केवल गाने नहीं थे, बल्कि पहाड़ की संस्कृति, जीवन संघर्ष, रिश्तों और भावनाओं की सजीव झलक थे। “झुमका गिरा रे”, “छनुली” और कई पारंपरिक गीतों को उन्होंने इतना लोकप्रिय बना दिया कि आज भी हर समारोह में उनकी आवाज़ गूँजती है।
दुर्भाग्यपूर्ण हादसा और संगीत जगत की क्षति
2018 में एक सड़क हादसे में पप्पू कार्की का असामयिक निधन हो गया। यह खबर सुनकर पूरे उत्तराखंड ही नहीं बल्कि लोकसंगीत प्रेमियों की आँखें नम हो गईं। उत्तराखंड ने अपनी एक अनमोल धरोहर को खो दिया था।
उनके जाने के बाद यह सवाल उठने लगा कि क्या अब उनकी आवाज़ और लोकगायकी की परंपरा भी धीरे-धीरे खत्म हो जाएगी? लेकिन कहते हैं कि सच्चा कलाकार कभी मरता नहीं। पप्पू कार्की अपने गीतों और अपनी विरासत के रूप में हमेशा जीवित रहेंगे।
दक्ष कार्की: नन्हें कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी
पप्पू कार्की के निधन के बाद उनके बेटे दक्ष कार्की पर यह बड़ी जिम्मेदारी आ गई कि वे अपने पिता की अमूल्य धरोहर को कैसे आगे बढ़ाएँगे। बहुत कम उम्र में पिता को खोने का दर्द सहने के बावजूद दक्ष ने हिम्मत नहीं हारी।
उन्होंने संगीत की राह को ही अपनी मंज़िल बनाया। दक्ष ने अपनी गायकी और अपनी मेहनत से यह साबित कर दिया कि पप्पू कार्की की आवाज़ और उनकी परंपरा को कोई खत्म नहीं कर सकता।
आज दक्ष कार्की के गीत और प्रस्तुतियाँ सोशल मीडिया और यूट्यूब पर लाखों लोगों द्वारा देखी और सुनी जा रही हैं। उनकी आवाज़ में भले ही बचपन की मासूमियत झलकती हो, लेकिन सुर और ताल की पक्कड़ देखकर लोग दंग रह जाते हैं।
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| दक्ष कार्की माता कविता कार्की के साथ |
लोकसंगीत का भविष्य: नई पीढ़ी की आवाज़
लोकगीत केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं हैं, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा और पहचान का प्रतीक हैं। पप्पू कार्की ने जो बीज बोया था, उसे अब दक्ष कार्की सिंच रहे हैं।
उनकी प्रस्तुतियों को देखकर लगता है कि उत्तराखंड का संगीत भविष्य बेहद उज्ज्वल है। दक्ष के हर गाने पर लोग उन्हें आशीर्वाद और शुभकामनाएँ देते हैं। सोशल मीडिया पर वे लाखों युवाओं के प्रेरणास्रोत बन चुके हैं।
दक्ष कार्की की उपलब्धियाँ और सफर
- दक्ष ने पिता के गीतों को नए अंदाज़ में गाकर उन्हें फिर से जीवित कर दिया है।
- यूट्यूब और फेसबुक पर उनकी प्रस्तुतियाँ लाखों बार देखी जा चुकी हैं।
- उत्तराखंड के बड़े सांस्कृतिक कार्यक्रमों में उन्हें आमंत्रित किया जाता है।
- कई बार उनकी आवाज़ सुनकर लोग कहते हैं कि उनमें उनके पिता पप्पू कार्की की झलक मिलती है।
जनता का समर्थन और शुभकामनाएँ
आज पूरे उत्तराखंड की जनता दक्ष कार्की के साथ खड़ी है। गाँव-गाँव और घर-घर में लोग उन्हें आशीर्वाद दे रहे हैं। बुजुर्गों से लेकर युवा तक सब चाहते हैं कि दक्ष अपने पिता की तरह लोकगायकी में नई ऊँचाइयाँ छुएँ।
लोग सोशल मीडिया पर लिखते हैं –
👉 “पप्पू कार्की तो अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी आवाज़ दक्ष कार्की के रूप में जिंदा है।”
👉 “बेटा, तू ऐसे ही अपने पिता का नाम रोशन करता रह, हम सबका आशीर्वाद हमेशा तेरे साथ है।”
पप्पू कार्की जैसे लोकगायक सदियों में पैदा होते हैं। उन्होंने उत्तराखंड की संस्कृति को जो सम्मान दिलाया, वह अमूल्य है। लेकिन यह खुशी की बात है कि उनकी विरासत अब सुरक्षित हाथों में है। उनके बेटे दक्ष कार्की ने यह जिम्मेदारी अपने नन्हें कंधों पर उठाई है और बेहद शानदार तरीके से उसे निभा रहे हैं।
आज पूरा उत्तराखंड और संगीत प्रेमी जनता उन पर गर्व कर रही है। आने वाले समय में निश्चित रूप से दक्ष कार्की न सिर्फ अपने पिता के अधूरे सपनों को पूरा करेंगे, बल्कि लोकसंगीत को एक नई पहचान भी देंगे।
👉 उत्तराखंड की जनता का संदेश साफ है: “पप्पू कार्की अमर रहेंगे और दक्ष कार्की उनका सपना पूरा करेंगे।”


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