सीकर में सरकारी खांसी की दवा से 5 वर्षीय बच्चे की मौत, परिजन दावा करते हैं कि सिरप पीने के बाद सांसें थम गईं

सीकर में सरकारी खांसी की दवा से 5 वर्षीय बच्चे की मौत, परिजन दवा को जिम्मेदार मान रहे हैं

सीकर (राजस्थान) में सरकारी अस्पताल से मिली खांसी की दवा पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। जिले के खोरी ब्राह्मणान गांव में 5 वर्षीय नितियांस की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई। परिजनों का आरोप है कि यह मौत सरकारी अस्पताल से मिली खांसी की दवा पीने के बाद हुई। बच्चे के चाचा बसंत शर्मा ने बताया कि नितियांस पिछले 4-5 दिन से खांसी से परेशान था। उसकी मां खुशी उसे इलाज के लिए नजदीकी चिराना सीएचसी लेकर गई थीं, जहां से उन्हें निशुल्क खांसी की दवा दी गई।

परिवार के अनुसार रविवार रात लगभग 11:30 बजे बच्चे को दवा पिलाई गई। आधी रात करीब 3:30 बजे उसे हिचकियां आईं, जिसके बाद पानी पिलाया गया और सोने दिया गया। सोमवार सुबह जब उसे उठाया गया तो वह मृत पाया गया। परिजन तुरंत उसे सीकर के एसके अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। बच्चे के पिता झारखंड में होटल चलाते हैं और अब परिवार केवल मां और बड़े भाई पर निर्भर हो गया है।

इस मामले में परिजनों ने बच्चे का पोस्टमार्टम कराने से मना कर दिया। दादिया थाना के SHO बुद्धिप्रसाद ने बताया कि परिवार का कहना है कि खांसी की दवा पीने के बाद ही बच्चे की मौत हुई और वे किसी अन्य जांच में शामिल नहीं होना चाहते। परिवार ने आरोप लगाया कि सरकारी निशुल्क दवा योजना में वितरित सिरप की गुणवत्ता ठीक नहीं थी, जिसकी वजह से मासूम की जान गई।

राजस्थान में इससे पहले भरतपुर और श्रीमाधोपुर में भी खांसी की दवा से बच्चों की तबीयत बिगड़ने के मामले सामने आ चुके हैं। भरतपुर में डॉक्टर ने खुद दवा पीकर इसकी जांच की थी, लेकिन उनकी भी तबीयत बिगड़ गई। ऐसे मामले स्वास्थ्य तंत्र पर गंभीर सवाल खड़े कर रहे हैं और यह दर्शाते हैं कि सरकारी दवा वितरण में गुणवत्ता पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

ग्रामीणों का कहना है कि सरकार को दवा की गुणवत्ता सुनिश्चित करनी चाहिए और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। परिवार और गांव में शोक का माहौल है। सोशल मीडिया पर भी लोग घटना को लेकर संवेदना व्यक्त कर रहे हैं और प्रशासन से न्याय की मांग कर रहे हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि बच्चों को दी जाने वाली दवाओं पर विशेष सतर्कता होनी चाहिए, क्योंकि एक भी दोषपूर्ण बैच गंभीर परिणाम दे सकता है।

इस घटना ने एक बार फिर सवाल खड़े कर दिए हैं कि गरीब और ग्रामीण परिवार सरकारी योजनाओं पर कैसे भरोसा करें, जब उन्हें दी जाने वाली दवा ही उनकी जान लेने का कारण बन सकती है। परिवार की अपील है कि भविष्य में ऐसी त्रासदी दोबारा न हो और दोषियों पर कानूनी कार्रवाई की जाए।

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