उत्तराखंड के पहाड़ों पर प्यास की मार: पाटी नगर पंचायत की करोड़ों की पेयजल योजना धरी रह गई

उत्तराखंड की पाटी नगर पंचायत प्यास से बेहाल – करोड़ों की योजना बनी फेल!

उत्तराखंड के पाटी नगर पंचायत में पेयजल योजना बनी सिरदर्द: करोड़ों की लागत के बावजूद जनता प्यासे गिलास को ताक रही है, 7 दिन से अधिक समय तक पानी नहीं मिलने की आशंका

उत्तराखंड, पाटी (नगर पंचायत):

उत्तराखंड की पहाड़ों पर बसी देवतुल्य जनता हमेशा से अपनी जिजीविषा और संघर्षशील जीवनशैली के लिए जानी जाती है। इन्हीं उम्मीदों के साथ पाटी नगर पंचायत में भी वर्षों पहले करोड़ों की लागत से एक लिफ्ट पेयजल योजना को मंजूरी मिली थी। तत्कालीन विधायक ने बड़ी मेहनत से इस योजना को स्वीकृति दिलाई, जिससे जनता को भरोसा हुआ कि अब हैंडपंप और कुओं पर निर्भरता खत्म होगी और हर घर तक आसानी से पानी पहुँचेगा।

उम्मीदों से हकीकत तक  “लिफ्ट” बनी “गिफ्ट”

जब योजना बनी, तो पाटी की जनता बेहद खुश थी। लोगों को लगा कि जहाँ रोज़ाना हैंडपंप से मुश्किल से दो कपड़े धोए जाते थे, अब घर में चार कपड़े आराम से धुल सकेंगे। लेकिन कुछ ही महीनों में यह योजना जनता की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई।

रिपोर्टों और सूचना के अधिकार (RTI) से सामने आया है कि महज एक महीने में चार से पाँच बार पानी की सप्लाई बाधित हुई। कभी दबाव कम, कभी लाइन टूटी और कभी मोटर खराब कारण कई दिए गए, लेकिन समस्या जस की तस बनी रही।

जनता की आवाज़ क्यों खामोश?

सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि जब योजना शुरू हुई थी, तब जनता और स्थानीय नेता बड़ी उम्मीदों के साथ आगे आए थे। विधायक जी ने अपनी भूमिका निभाई, लेकिन अब जब समस्या लगातार सामने आ रही है तो जनता की आवाज़ कहीं खो गई लगती है।

जो लोग कभी कहते थे कि “बहुत बोलते हो”, वे आज चुप हैं। सवाल यह है कि क्या पानी जैसी बुनियादी ज़रूरत पर भी चुप्पी साध लेना सही है?

सवाल प्रशासन और सरकार से

पेयजल योजना पर करोड़ों का खर्च हुआ। इसके बावजूद जनता को 15–15 दिन तक पानी नहीं मिलता। और अब तो सूचना है कि अगले 7 दिन तक भी पानी सप्लाई नहीं होगी।

क्या यह योजना जनता के लिए राहत लेकर आई थी या फिर सिर्फ़ एक “कागज़ी सफलता”?

पहाड़ और पानी का विरोधाभास

उत्तराखंड को “जल स्रोतों की धरती” कहा जाता है। यहाँ नदियाँ, गाड़-गदेरे और प्राकृतिक जलधाराएँ प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं। लेकिन विडंबना यह है कि इन्हीं पहाड़ों की बस्तियों में आज भी लोग पानी के लिए जूझ रहे हैं।

यह हाल सिर्फ़ पाटी नगर पंचायत का नहीं है, बल्कि पूरे उत्तराखंड में कई गाँव और कस्बे पेयजल योजनाओं की नाकामी की मार झेल रहे हैं।

अब समय है कि प्रशासन और सरकार इस पर ठोस कदम उठाएँ। सिर्फ़ योजनाएँ स्वीकृत कर देने से समस्या हल नहीं होती, बल्कि उनकी निगरानी और सही ढंग से क्रियान्वयन भी ज़रूरी है। पाटी नगर पंचायत की जनता का सवाल वाजिब है

“करोड़ों की लागत से बनी लिफ्ट पेयजल योजना आखिर आम आदमी तक क्यों नहीं पहुँच पा रही?”


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