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जहां धनुष-बाण चढ़ाने से पूरी होती है हर मन्नत |
जय हो बाबा ब्यानधुरा देवभूमि का रहस्यमयी धाम, जहां धनुष-बाण चढ़ाने से पूरी होती हैं मनोकामनाएँ
उत्तराखंड की पहाड़ियों में बसे कई मंदिर और धाम न केवल आस्था का केंद्र हैं बल्कि अपनी अद्वितीय परंपराओं और पौराणिक कथाओं के लिए भी जाने जाते हैं। इन्हीं में से एक है बाबा ब्यानधुरा धाम, जो चंपावत और ऊधम सिंह नगर की सीमा पर स्थित है। यह धाम सदियों से श्रद्धालुओं की आस्था का प्रतीक बना हुआ है और इसकी एक खास परंपरा इसे पूरे भारत में अलग पहचान दिलाती है।
बाबा ब्यानधुरा मंदिर का नाम सुनते ही मन में जिज्ञासा पैदा होती है। “ब्यानधुरा” का शाब्दिक अर्थ है “धनुष की चोटी”। मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है, उसका स्वरूप वास्तव में धनुष जैसा दिखाई देता है। यही वजह है कि इसे यह नाम मिला। लेकिन इस धाम की वास्तविक विशेषता सिर्फ इसके स्वरूप में नहीं, बल्कि उस परंपरा में है, जो आज भी अक्षुण्ण बनी हुई है। यहां मन्नत पूरी होने पर भक्त फूल या नारियल नहीं, बल्कि धनुष-बाण अर्पित करते हैं।
पौराणिक कथाएँ और महाभारत से जुड़ाव
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह धाम सीधे-सीधे महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव इस क्षेत्र में आए थे। अर्जुन ने अपना प्रसिद्ध गांडीव धनुष यहीं छिपाया था। आज भी लोगों का विश्वास है कि यह धनुष इस स्थान पर सुरक्षित है और केवल ऐड़ी देवता ही इसे उठा सकते हैं। इस कथा के चलते बाबा ब्यानधुरा धाम रहस्य और आस्था का अद्वितीय संगम बन गया है।
यह मंदिर ऐड़ी देवता को समर्पित है। उन्हें क्षेत्र का रक्षक देवता माना जाता है। ग्रामीणों की मान्यता है कि बाबा संकट की घड़ी में हर भक्त की रक्षा करते हैं और न्याय प्रदान करते हैं। यही कारण है कि लोग यहां आकर न सिर्फ प्रार्थना करते हैं बल्कि अपने सुख-दुख भी बाबा के चरणों में समर्पित कर देते हैं।
अनूठी पूजा-पद्धति
देशभर के मंदिरों में भक्त नारियल, कपड़े, प्रसाद या सोने-चांदी की वस्तुएं चढ़ाते हैं, लेकिन बाबा ब्यानधुरा धाम में यह परंपरा बिल्कुल अलग है। यहां भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर धनुष-बाण चढ़ाते हैं। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और आज भी उतनी ही श्रद्धा से निभाई जाती है। स्थानीय लोग मानते हैं कि धनुष-बाण चढ़ाना शक्ति और साहस का प्रतीक है और बाबा इन्हें स्वीकार कर भक्त की रक्षा करते हैं।
इसके अलावा, यहां रात्रि जागरण और दीप जलाने की परंपरा भी है। भक्त रातभर भजन-कीर्तन करते हैं और बाबा की महिमा का गुणगान करते हैं। कहते हैं कि दीपक की ज्योति और भक्ति के स्वर वातावरण को इतना पवित्र बना देते हैं कि मन की हर उलझन दूर हो जाती है।
प्राकृतिक सुंदरता और वातावरण
बाबा ब्यानधुरा धाम का भौगोलिक स्थान भी इसे खास बनाता है। ऊँचे पहाड़ों, हरे-भरे जंगलों और शांत वातावरण के बीच स्थित यह मंदिर देखने में बेहद मनोहारी लगता है। सुबह की धूप जब मंदिर की घंटियों की आवाज़ के साथ पहाड़ियों पर चमकती है तो दृश्य किसी आध्यात्मिक चित्र की तरह प्रतीत होता है। कई भक्त बताते हैं कि यहां पहुंचने के बाद मन को जो शांति मिलती है, वह कहीं और संभव नहीं।
धार्मिक मेलों का आयोजन
धाम में हर साल धार्मिक मेलों का आयोजन होता है। इन मेलों में न केवल आसपास के गांवों से, बल्कि दूर-दराज़ जिलों से भी श्रद्धालु आते हैं। मेला धार्मिक आस्था के साथ-साथ सांस्कृतिक रंग भी बिखेरता है। लोकगीत, नृत्य और पारंपरिक वाद्ययंत्रों की ध्वनि इस धाम को जीवंत बना देती है। परिवार अपने बच्चों का मुंडन संस्कार, नए जीवन की शुरुआत या विवाह से पहले यहां आकर आशीर्वाद लेना जरूरी मानते हैं।
भक्तों की मान्यता और अनुभव
भक्तों का कहना है कि बाबा ब्यानधुरा सच्चे मन से की गई हर प्रार्थना सुनते हैं। कई लोग बताते हैं कि कठिन बीमारियों से छुटकारा मिलने, पारिवारिक संकट दूर होने और जीवन की बड़ी समस्याओं के हल इसी धाम से मिले। यही कारण है कि स्थानीय लोग हर रोज अपनी दिनचर्या की शुरुआत बाबा को प्रणाम करके करते हैं।
यात्रा मार्ग
बाबा ब्यानधुरा धाम तक पहुंचने के लिए सड़क मार्ग सबसे आसान है। यह चंपावत जिले से करीब 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और हल्द्वानी, किच्छा व ऊधम सिंह नगर से भी सड़क मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जबकि हवाई मार्ग से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए पंतनगर एयरपोर्ट सबसे नजदीक पड़ता है।
बाबा ब्यानधुरा धाम सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि यह आस्था, पौराणिकता और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम है। यहां की परंपराएँ इसे अन्य मंदिरों से अलग पहचान देती हैं। धनुष-बाण अर्पित करने की अनोखी रीति इसे खास बनाती है और महाभारत से जुड़ी कथाएँ इसकी पवित्रता को और गहरा करती हैं। यही कारण है कि हर श्रद्धालु यहां पहुंचकर भावुक होकर कह उठता है
जय हो बाबा ब्यानधुरा, सबकी रक्षा करना


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