“नैनीताल का दिगोली गांव: आज़ादी के 75 साल बाद भी बिना सड़क के जीवन!”

दिगोली गांव के रास्ते 

🚨 नैनीताल का दिगोली गांव सड़क से वंचित: पक्की तो दूर, कच्ची सड़क भी नहीं!

रिपोर्टर: ग्रामीण संवाददाता, नैनीताल | 

उत्तराखंड के नैनीताल जिले का दिगोली गांव आज भी सड़क जैसी बुनियादी सुविधा से वंचित है। जानिए कैसे यहां न पक्की सड़क है, न कच्ची — और कैसे यह गांव विकास से अब तक कटा हुआ है।


दिगोली गांव की ओर 

1. प्रस्तावना: जब गांव आज भी ‘सड़क’ का इंतजार कर रहा है

उत्तराखंड के नैनीताल जिले का एक गांव दिगोली, आज़ादी के 75 साल बाद भी बुनियादी जरूरतों के लिए संघर्ष कर रहा है। गांव तक न पक्की सड़क है, न कच्ची सड़क। यह सुनने में जितना हैरान करता है, हकीकत उससे कहीं अधिक पीड़ादायक है। दिगोली के निवासी आज भी पैदल पथरीले और उबड़-खाबड़ जंगलों से होकर बाजार, स्कूल, अस्पताल और दुनिया तक पहुँचते हैं।


यह एक ऐसे गांव की कहानी है, जहाँ सरकारी योजनाएं अब तक केवल कागज़ों में दिखती हैं — और ज़मीन पर मौन उपेक्षा


2. दिगोली गांव की भौगोलिक स्थिति और बुनियादी स्थिति


दिगोली गांव नैनीताल जनपद के पहाड़ी क्षेत्र में बसा हुआ है। यह गांव सुंदर वनों और पहाड़ियों के बीच बसा है, लेकिन वहां के निवासियों के लिए जीवन किसी संघर्ष से कम नहीं।


✅ मूलभूत जानकारी:

जिला: नैनीताल

राज्य: उत्तराखंड

विकासखंड: संभवतः धारी या रामगढ़ क्षेत्र के अंतर्गत

सड़क की स्थिति: शून्य कनेक्टिविटी — न पक्की, न         कच्ची, न ही मोटरमार्ग


दिगोली गाँव की ओर 


3. सड़क नहीं तो जीवन कैसा?


❌ कच्ची सड़क तक नहीं!


“हमारे गांव में कोई रास्ता नहीं है। बरसात में पूरा क्षेत्र दलदल हो जाता है। लोग फिसलकर गिरते हैं। बीमार को अस्पताल पहुँचाना मतलब जान जोखिम में डालना है।”

स्थानीय निवासी, दिगोली


गांव तक कोई डामर या आरसीसी मार्ग नहीं बना।

Forest Trail या पैदल पगडंडी ही एकमात्र रास्ता है।

मोटर वाहन गांव तक पहुँच नहीं सकते — ज़रूरत पड़ने पर मरीजों को कंधे पर उठाकर 3–5 किमी दूर तक लाना पड़ता है।


दिगोली गांव से कफ़रोली गांव की ओर 

4. बरसात का मौसम = मौत का खतरा


मानसून में दिगोली गांव में जानलेवा संकट बन जाता है। बिना रास्ते के गांव तक न राहत पहुँच सकती है, न एम्बुलेंस। कई बार ऐसी खबरें आती हैं कि:

महिलाओं ने गर्भावस्था में जंगल में ही प्रसव किया।

बुजुर्ग मरीज घर में ही दम तोड़ देते हैं क्योंकि समय पर अस्पताल नहीं पहुँच पाते।

बच्चे कीचड़ में गिरकर घायल हो जाते हैं, और मलिनता के कारण संक्रमण का खतरा बढ़ता है।



दिगोली गाँव और स्कूल के बीच का रास्ता 

5. शिक्षा: गांव के बच्चों का टूटा सपना


स्कूल जाने के लिए बच्चों को कई किलोमीटर का पैदल रास्ता तय करना पड़ता है, वो भी बिना सुरक्षा के। कई अभिभावकों ने बताया कि:


“हम अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं लेकिन रास्ता ही नहीं है। बरसात में तो उन्हें रोकना ही पड़ता है।”


इसका सीधा असर बाल शिक्षा पर पड़ा है:

स्कूल ड्रॉपआउट दर बढ़ी है।

बालिकाओं की शिक्षा बिलकुल थम जाती है।


स्कूल के नीचे का रास्ता 

6. स्वास्थ्य सेवाएँ: दूर, महँगी और असहाय


गांव में:

कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र (PHC) नहीं।

एंबुलेंस पहुंचना असंभव

बीमारी हो तो या तो कंधे पर उठाओ या भगवान भरोसे छोड़ दो।


“एक बुजुर्ग महिला की मौत इसलिए हो गई क्योंकि वक्त पर अस्पताल नहीं पहुँचाया जा सका।” — गांव की एक महिला


7. आपदा के समय गांव होता है ‘कट-ऑफ जोन’


उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में भूस्खलन और बारिश से होने वाली तबाही आम बात है। दिगोली जैसे गांवों में:

रेस्क्यू टीम समय पर नहीं पहुँच पाती।

राशन और दवाइयाँ खत्म हो जाती हैं।

लोग दूसरी दुनिया से पूरी तरह कट जाते हैं।


8. प्रशासनिक विफलता और झूठे वादे


⛔ सरकारी योजनाओं का कोई लाभ नहीं

प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (PMGSY) का नाम गांववालों ने सुना है — लेकिन फायदा नहीं देखा

मनरेगा जैसी योजनाएं सिर्फ कागज़ पर दिखती हैं

पंचायत प्रतिनिधि और विधायक चुनाव के समय आते हैं, लेकिन फिर नोटबुक भरकर लौट जाते हैं।


9. सामाजिक और आर्थिक नुकसान

सड़क ना होने के कारण मंडी से जुड़ाव नहीं, जिससे स्थानीय उत्पादों का बाज़ार तक पहुँचना नामुमकिन

शादी-ब्याह भी प्रभावित — गांव की लड़कियों को बाहर शादी करने में समस्या आती है क्योंकि लोग कहते हैं, “जहाँ सड़क नहीं, वहाँ रिश्ते नहीं”।

युवाओं का पलायन बढ़ रहा है।


10. क्या कहती हैं आसपास की खबरें? (नैनीताल के समान गांव)


📍 गैरखेत गांव (Gairkhet):

नैनीताल से 3 किमी दूर, लेकिन कोई मोटर मार्ग नहीं

लड़कियों को स्कूल छोड़ना पड़ा, कई बार गर्भवती महिलाओं की मौत भी हुई।

विवाह प्रस्ताव तक बंद हो गए हैं।


“No road, no wedding bells” 


11. गाँव की जनता की माँगें

1. तत्काल सड़क निर्माण — कम से कम मोटर योग्य   कच्चा ट्रैक तो बनाया जाए।

2. RCC/PMGSY के तहत पक्की रोड

3. Forest विभाग से एनओसी प्रक्रिया में तेजी

4. प्रशासनिक जवाबदेही तय हो।

5. स्थानीय युवाओं की निगरानी समिति बने।


12. समाधान की दिशा: क्या हो सकता है अगला कदम?


कार्य प्राथमिकता अपेक्षित समय

भू-सर्वेक्षण और एनओसी लेना उच्च 1 माह

गिट्टी-बोल्डर वाला कच्चा ट्रैक बनाना तुरंत 3 महीने

डामरीकरण माध्यमिक 6 महीने–1 साल

पंचायत निगरानी समिति गठन तत्काल 15 दिन

सड़क निर्माण की लाइव ट्रैकिंग आवश्यक चलती प्रक्रिया


13. निष्कर्ष: दिगोली की पुकार एक संदेश है


“जहाँ सड़क नहीं, वहाँ जीवन नहीं।”


दिगोली गांव केवल एक भूगोलिक इकाई नहीं है — यह हमारे सिस्टम की खामियों का जीता-जागता उदाहरण है। जब हम 5G, Bullet Train, और चंद्रयान पर गर्व करते हैं — तब भी अगर एक गांव बिना सड़क के रह रहा है, तो यह विकास की सबसे बड़ी विफलता है।


✊ अब क्या करें? (Action Plan for You)

इस रिपोर्ट को लोकल मीडिया, सोशल मीडिया और पत्रकारों के पास भेजें।

RTI दाखिल करें — “दिगोली गांव तक सड़क क्यों नहीं बनी?”

ऑनलाइन पिटीशन शुरू करें — “Digoli ke liye Sadak Lao”

गांव में एक डॉक्यूमेंट्री/व्लॉग शूट करें — ज़मीनी हकीकत दिखाएं।

अपने विधायक और सांसद को खुला पत्र लिखें और उसे वायरल करें

🛑 Disclaimer | अस्वीकरण

इस रिपोर्ट में प्रस्तुत जानकारी स्थानीय निवासियों, सोशल मीडिया स्रोतों, समाचार रिपोर्ट्स और संवाददाता अनुभवों पर आधारित है। दिगोली गांव, नैनीताल जनपद की सड़क संबंधी स्थिति को जागरूकता और संवाद के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया है।

हमारा उद्देश्य किसी संस्था, प्रशासन, विभाग या व्यक्ति को बदनाम करना नहीं है, बल्कि ग्रामीण विकास की वास्तविक समस्याओं को रेखांकित करना है ताकि ज़िम्मेदार तंत्र आवश्यक कार्रवाई करे।

यदि किसी तथ्य में सुधार या अद्यतन की आवश्यकता हो, तो कृपया हमें सूचित करें। हम आवश्यक संशोधन करने के लिए तत्पर हैं।

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