उत्तराखंड पंचायत चुनाव 2025 में प्रदेश ने एक बार फिर लोकतंत्र का शानदार उदाहरण पेश किया। जहां भाजपा ने कई जिलों में बढ़त बनाई, वहीं कांग्रेस ने भी कई क्षेत्रों में प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज की। खास बात यह रही कि इस चुनाव में महिलाओं और युवाओं की भागीदारी ने सभी का ध्यान खींचा।
🔹 महिलाओं और युवाओं का जलवा
इस बार के पंचायत चुनावों में सबसे बड़ा संदेश यही रहा कि ग्राम राजनीति में अब युवा और महिलाएं भी नेतृत्व में आगे आ रही हैं।
✅ 22 वर्षीय साक्षी बनीं ग्राम प्रधान
पौड़ी गढ़वाल के कुई गांव से बीटेक कर चुकी 22 वर्षीय साक्षी को ग्राम प्रधान चुना गया। साक्षी की जीत ने यह साबित कर दिया कि अब ग्रामीण मतदाता सिर्फ उम्र नहीं, सोच और विजन पर भरोसा करता है।
✅ देवरानी-जेठानी की एक साथ जीत
रीठा रैतोली गांव में एक ही परिवार की दो बहुओं – सोनिया थापा (प्रधान) और साक्षी (क्षेत्र पंचायत सदस्य) की एक साथ जीत ने महिला सशक्तिकरण का नया उदाहरण पेश किया।
✅ पति-पत्नी की जीत
अल्मोड़ा जिले के धौलादेवी ब्लॉक से एक पति-पत्नी की जोड़ी ने प्रधान और बीडीसी पद जीतकर साझा नेतृत्व की मिसाल कायम की।
🔹 भाजपा और कांग्रेस में कड़ा मुकाबला
हालांकि पंचायत चुनावों में सीधे पार्टी के नाम पर उम्मीदवार नहीं उतारे जाते, लेकिन समर्थित प्रत्याशियों के जरिए भाजपा और कांग्रेस में जोरदार टक्कर देखने को मिली।
भाजपा का प्रदर्शन:
- पौड़ी, रुद्रप्रयाग, टिहरी, उत्तरकाशी, चंपावत, पिथौरागढ़, बागेश्वर, अल्मोड़ा जिलों में भाजपा समर्थित उम्मीदवारों की बढ़त।
- नगर निकाय चुनावों की तरह पंचायत चुनाव में भी भाजपा ने सत्ताधारी होने का फायदा उठाया।
कांग्रेस का प्रभाव:
- देहरादून, नैनीताल और ऊधम सिंह नगर जिलों में कांग्रेस समर्थित प्रत्याशियों ने प्रभावशाली प्रदर्शन किया।
- ग्रामीण अंचलों में कांग्रेस की पकड़ पहले से मजबूत दिखी।
🔹 लोकतंत्र की एक अनोखी मिसाल: 45 साल से बिना चुनाव के बनता है प्रधान!
रौतू की बेली (पनीर विलेज) नामक गांव में पिछले 45 वर्षों से चुनाव नहीं होते। वहां हर बार आपसी सहमति से प्रधान चुना जाता है। यह गांव लोकतंत्र की परिपक्वता का अद्भुत उदाहरण बन चुका है।
📌 निष्कर्ष:
उत्तराखंड पंचायत चुनाव 2025 ने यह स्पष्ट किया कि राज्य का ग्रामीण मतदाता अब विकास, शिक्षा, नेतृत्व और समानता को महत्व देता है। महिलाओं और युवाओं का बढ़ता योगदान यह दर्शाता है कि लोकतंत्र की जड़ें अब और भी गहरी हो रही हैं। आने वाले वर्षों में यह बदलाव न केवल पंचायत स्तर बल्कि विधानसभा और लोकसभा जैसे मंचों पर भी देखने को मिलेगा।

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