उत्तराखंड के नैनीताल जिले का दिगोली गांव: आज़ादी के 75 साल बाद भी विकास से कोसों दूर
उत्तराखंड के नैनीताल जिले की सुरम्य वादियों के बीच बसा दिगोली गांव आज भी विकास की रोशनी से वंचित है। जहां एक ओर देश डिजिटल इंडिया, स्मार्ट सिटी और चंद्रयान की सफलताएं मना रहा है, वहीं दूसरी ओर दिगोली जैसे गांव आज भी बिजली, पानी, सड़क, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं। यह स्थिति न केवल चिंताजनक है, बल्कि यह सवाल भी खड़े करती है कि आखिर इतने वर्षों में प्रशासनिक योजनाओं की पहुंच इन दूरस्थ गांवों तक क्यों नहीं हो पाई?
1. सड़क नहीं, संघर्ष ही रास्ता है
दिगोली गांव में पहुंचने के लिए अब भी लोगों को कई किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पैदल तय करनी पड़ती है। कच्चे और टूटे-फूटे रास्तों से होकर लोग जरूरी सामान लाते हैं। गांव में आरसीसी सड़क तो छोड़िए, जहां खड़ंजे की सख्त ज़रूरत है वहां तक आज तक खड़ंजा भी नहीं बना। कई जगहों पर पैदल चलने लायक समतल रास्ता तक नहीं है। मरीजों को अस्पताल ले जाना किसी जंग जीतने से कम नहीं। बरसात के दिनों में तो यह रास्ता और भी खतरनाक हो जाता है। ग्रामीण बताते हैं कि कई बार गर्भवती महिलाओं को खाट पर उठाकर नीचे लाना पड़ा है, और समय पर इलाज न मिलने से जान भी जा चुकी है।
2. बिजली के खंभे हैं, लेकिन बिजली नहीं
गांव में बिजली के खंभे तो खड़े हैं, लेकिन उन पर तार नहीं हैं या फिर वर्षों से जर्जर हालत में हैं। गांव में रात होते ही अंधेरा पसर जाता है। बच्चों की पढ़ाई, घर के काम और सुरक्षा सभी कुछ प्रभावित होते हैं। कई बार लोगों ने जनप्रतिनिधियों से शिकायत की, लेकिन जवाब यही मिला कि “फाइल आगे भेज दी गई है।”
3. स्वास्थ्य सुविधाएं नाम मात्र की
गांव में एक भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। मामूली बुखार से लेकर गंभीर बीमारी तक के इलाज के लिए ग्रामीणों को 15-20 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। एंबुलेंस जैसी कोई सुविधा यहां उपलब्ध नहीं है। गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि कई बार लोग रास्ते में ही दम तोड़ देते हैं क्योंकि इलाज समय पर नहीं मिल पाता।
4. शिक्षा: विद्यालय भवन जर्जर, शिक्षक गायब
दिगोली गांव में एक प्राइमरी स्कूल तो है, लेकिन उसकी हालत दयनीय है। भवन की छत टपकती है, शौचालय नहीं हैं और शिक्षकों की संख्या भी अपर्याप्त है। कई बार महीनों तक कोई शिक्षक नहीं आता। बच्चे पढ़ाई से दूर होते जा रहे हैं और उनके माता-पिता भी अब शिक्षा को प्राथमिकता नहीं दे पा रहे क्योंकि उन्हें अपनी रोज़मर्रा की ज़रूरतें पूरी करने में ही संघर्ष करना पड़ता है।
5. राजनीतिक उपेक्षा का शिकार
दिगोली गांव के लोग बताते हैं कि हर चुनाव से पहले नेता गांव में आते हैं, बड़े-बड़े वादे करते हैं, लेकिन जीत के बाद सब भूल जाते हैं। गांव की स्थिति में ज़रा भी सुधार नहीं हुआ। सरकारी योजनाएं जैसे प्रधानमंत्री सड़क योजना, सौभाग्य योजना, आयुष्मान भारत – किसी की भी सीधी पहुंच यहां नहीं हुई।
निष्कर्ष:
दिगोली गांव की यह हालत उत्तराखंड ही नहीं, पूरे देश के लिए एक सवालिया निशान है। जब देश स्मार्ट सिटी की बात करता है, तो क्या दिगोली जैसे गांव उस नक्शे में नहीं आते? क्या देश का विकास केवल शहरों तक ही सीमित रहेगा? अब समय आ गया है कि सरकारें, जनप्रतिनिधि और प्रशासन इस गांव की सुध लें और यहां के लोगों को भी 21वीं सदी के भारत की बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराएं। वरना आज़ादी की 100वीं वर्षगांठ तक भी दिगोली विकास की राह ताकता रह जाएगा।
डिस्क्लेमर:
इस रिपोर्ट का उद्देश्य दिगोली गांव की वर्तमान स्थिति को उजागर करना है, जिससे जनप्रतिनिधियों और प्रशासन का ध्यान इस ओर आकर्षित हो सके। यह रिपोर्ट ग्रामीणों से मिली जानकारियों, स्थानीय अनुभवों और सामाजिक संवादों पर आधारित है। प्रशासन से जुड़े किसी भी व्यक्ति या संस्था की छवि को ठेस पहुँचाना इसका उद्देश्य नहीं है। यदि किसी पक्ष को इसमें सुधार या प्रतिक्रिया देनी हो, तो हम उसका स्वागत करते हैं।


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