उत्तराखंड के बागेश्वर में नाबालिग गर्भवती का चौंकाने वाला खुलासा, मेडिकल रिपोर्ट में कोख में जुड़वां शिशु होने से फैली सनसनी

नाबालिग की कोख में जुड़वां शिशु, मेडिकल खुलासे से हड़कंप

उत्तराखंड: नाबालिग की कोख में जुड़वां मासूम, मेडिकल खुलासे से फैली सनसनी

उत्तराखंड के बागेश्वर जिले के कपकोट क्षेत्र से नाबालिग गर्भवती का मामला अब बेहद गंभीर मोड़ पर पहुंच गया है। शुरुआती जांच में जब नाबालिग की गर्भावस्था की पुष्टि हुई थी, तब यह खबर पूरे इलाके में चिंता का कारण बनी। लेकिन ताजा मेडिकल रिपोर्ट में जो खुलासा हुआ, उसने सभी को चौंका दिया है। दरअसल, अल्ट्रासाउंड जांच में यह सामने आया है कि किशोरी की कोख में एक नहीं बल्कि दो जुड़वां शिशु पल रहे हैं। इस खुलासे के बाद पूरे क्षेत्र में सनसनी फैल गई है और स्थानीय प्रशासन से लेकर प्रदेश सरकार तक इस पर निगाहें टिक गई हैं।

जानकारी के अनुसार, कुछ दिनों पहले परिजनों को शक हुआ कि किशोरी की तबीयत ठीक नहीं है। परिजनों ने जब चिकित्सकों से जांच कराई तो गर्भवती होने का मामला सामने आया। इसके बाद तुरंत पुलिस को सूचना दी गई और किशोरी को जिला अस्पताल लाया गया। यहां प्रारंभिक जांच के बाद उसे विस्तृत जांच के लिए विशेषज्ञ चिकित्सकों के पास भेजा गया। जब अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट सामने आई तो पता चला कि गर्भ में जुड़वां शिशु हैं। डॉक्टरों के अनुसार नाबालिग उम्र में गर्भधारण अपने आप में खतरनाक है और अगर गर्भ में दो शिशु पल रहे हों तो यह जोखिम और भी बढ़ जाता है।

मेडिकल विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के मामलों में माँ और बच्चों दोनों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। किशोरावस्था में शरीर गर्भधारण के लिए पूरी तरह सक्षम नहीं होता, ऐसे में न केवल शारीरिक जटिलताएं बल्कि मानसिक दबाव भी तेजी से बढ़ जाता है। स्त्री रोग विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे मामलों में किशोरी को विशेष चिकित्सकीय निगरानी और काउंसलिंग की आवश्यकता होती है। साथ ही, गर्भ की स्थिति को देखते हुए डॉक्टरों को लगातार परीक्षण करने होंगे ताकि किसी भी तरह का खतरा टाला जा सके।

मामले के सामने आने के बाद पुलिस ने तुरंत कार्रवाई शुरू कर दी। पहले से ही पॉक्सो (POCSO) एक्ट के तहत केस दर्ज किया गया है और जांच की जा रही है। पुलिस अधीक्षक बागेश्वर ने स्पष्ट किया है कि किसी भी दोषी को बख्शा नहीं जाएगा और पीड़िता को न्याय दिलाने के लिए हर संभव कदम उठाए जाएंगे। पुलिस ने किशोरी के बयान दर्ज कर लिए हैं और उसके आसपास के लोगों से पूछताछ का सिलसिला जारी है। प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि इस मामले में जल्द ही गिरफ्तारी हो सकती है।

यह मामला सामने आने के बाद समाज में आक्रोश और चिंता का माहौल है। स्थानीय लोग इसे नाबालिगों की सुरक्षा में गंभीर लापरवाही मान रहे हैं। कई सामाजिक संगठनों ने इस घटना की कड़ी निंदा की है और कहा है कि ग्रामीण इलाकों में बच्चों की सुरक्षा और जागरूकता पर काम नहीं होने के कारण ऐसी घटनाएं सामने आती रहती हैं। उनका कहना है कि सरकार और प्रशासन को सिर्फ घटना के बाद कार्रवाई करने की बजाय पहले से सुरक्षा उपाय सुनिश्चित करने होंगे।

किशोरी की मानसिक स्थिति को लेकर मनोवैज्ञानिक भी चिंता जता रहे हैं। उनका कहना है कि नाबालिग होने के कारण पीड़िता पहले से ही मानसिक दबाव में है और अब जुड़वां गर्भधारण की जानकारी ने इस दबाव को और बढ़ा दिया है। मनोवैज्ञानिकों का सुझाव है कि इस समय पीड़िता को परिवार का भावनात्मक सहयोग और पेशेवर काउंसलिंग मिलना बेहद जरूरी है, वरना उसका मानसिक स्वास्थ्य और अधिक बिगड़ सकता है।

कानून की दृष्टि से भी यह मामला जटिल है। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट के तहत नाबालिग गर्भवती मामलों में गर्भपात की अनुमति दी जा सकती है, लेकिन इसमें डॉक्टरों की राय और कोर्ट की मंजूरी आवश्यक होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब मामला जुड़वां गर्भ का हो, तब चिकित्सकों को और अधिक सतर्कता बरतनी होती है। ऐसे में आने वाले दिनों में अदालत और मेडिकल बोर्ड का फैसला अहम साबित होगा।

मामले ने प्रदेश स्तर पर भी गूंज पैदा कर दी है। विपक्षी दलों ने सरकार पर कानून-व्यवस्था और महिला सुरक्षा को लेकर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि पहाड़ी और ग्रामीण इलाकों में आज भी बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर ठोस इंतजाम नहीं किए गए हैं। वहीं, प्रदेश सरकार ने स्पष्ट किया है कि पीड़िता और उसके परिवार को हर संभव सहायता दी जाएगी और दोषियों को कठोरतम सजा दिलाई जाएगी। अधिकारियों को निर्देश दिए गए हैं कि पीड़िता की सुरक्षा, स्वास्थ्य और कानूनी सहायता का पूरा ख्याल रखा जाए।

ग्रामीण और पहाड़ी इलाकों में ऐसी घटनाएं कहीं न कहीं समाज की खामियों को भी उजागर करती हैं। बच्चों की शिक्षा में कमी, पारिवारिक जागरूकता का अभाव, सुरक्षा तंत्र की कमजोरी और कानून के प्रति उदासीनता ही इस तरह की घटनाओं की बड़ी वजहें हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि इस मामले से सीख लेते हुए सरकार और समाज को मिलकर बच्चों की सुरक्षा और जागरूकता को प्राथमिकता देनी चाहिए।

कपकोट से सामने आया यह मामला केवल एक परिवार या गांव की चिंता नहीं है, बल्कि पूरे समाज के लिए एक चेतावनी है। नाबालिग की कोख में जुड़वां शिशु पलना न केवल चिकित्सकीय दृष्टि से गंभीर है, बल्कि सामाजिक और मानसिक दृष्टि से भी बेहद संवेदनशील है। अब देखना होगा कि पुलिस जांच कितनी तेजी से आगे बढ़ती है और दोषियों को कब तक सजा मिल पाती है। साथ ही, यह भी देखने वाली बात होगी कि सरकार इस घटना से सबक लेकर भविष्य में नाबालिगों की सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर कौन से ठोस कदम उठाती है।

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