भीलवाड़ा में 15 दिन के मासूम को जंगल में फेंक दिया गया, मुंह में पत्थर ठूंसकर फेवीक्विक लगाया गया। पुलिस मामले की जांच में जुटी, बच्चा गंभीर स्थिति में हायर सेंटर रेफर।

भीलवाड़ा 15 दिन के मासूम को जंगल में फेंक, मुंह में पत्थर ठूंसकर फेवीक्विक लगाया गया


भीलवाड़ा। मानवता को शर्मसार करने वाली एक घटना मंगलवार दोपहर मांडलगढ़ क्षेत्र से सामने आई। यहां लगभग 15 दिन का एक मासूम बच्चा जंगल में तड़पता हुआ पाया गया। बच्चे के मुंह में पत्थर ठूंसकर फेवीक्विक लगाया गया था ताकि वह रो न सके।

घटना की जानकारी मवेशी चराने वाले एक युवक को तब मिली, जब वह जंगल में अपने मवेशी चराने गया था। युवक ने देखा कि बच्चा पत्थरों के ढेर के पास तड़प रहा है। उसने तुरंत स्थानीय लोगों को बुलाया और बच्चे के मुंह से पत्थर निकालकर उसे सरकारी हॉस्पिटल बिजौलिया पहुंचाया।

हॉस्पिटल में बच्चे की प्रारंभिक जांच शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. मुकेश धाकड़ ने की। उन्होंने बताया कि बच्चा करीब 15-20 दिन का है। बच्चे के मुंह पर फेवीक्विक लगा हुआ था और दाईं जांघ पर जलने के निशान भी पाए गए। डॉ. धाकड़ ने कहा कि प्राथमिक उपचार के बाद बच्चे को दूध पिलाया गया और उसकी गंभीर हालत को देखते हुए उसे भीलवाड़ा हायर सेंटर रेफर किया गया।

पुलिस की जांच

पुलिस प्रशासन ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल जांच शुरू कर दी है। अधिकारियों ने आसपास के ग्रामीणों और स्थानीय लोगों से पूछताछ की जा रही है ताकि यह पता लगाया जा सके कि बच्चा किसने और क्यों जंगल में फेंका। इसके अलावा, मांडलगढ़ और बिजौलिया के अस्पतालों में हाल ही में हुई डिलीवरी का रिकॉर्ड भी खंगाला जा रहा है।

जिलाधिकारी ने बताया कि दोषियों को जल्द से जल्द पकड़कर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। पुलिस ने आश्वासन दिया कि बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी और उसके स्वास्थ्य की निगरानी लगातार की जाएगी।

स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया

स्थानीय ग्रामीण इस घटना से सदमे में हैं। उन्होंने कहा कि मवेशी चराने वाले युवक की सतर्कता ही थी जिसने समय रहते बच्चे की जान बचाई। ग्रामीणों का कहना है कि यह घटना समाज में भय और असुरक्षा की भावना पैदा करती है और इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए।

समाज और प्रशासन के लिए चेतावनी

यह घटना न केवल मासूम की जान के लिए खतरा बन सकती थी, बल्कि समाज और प्रशासन के लिए भी चेतावनी है। मानवता की रक्षा करना हर नागरिक और प्रशासनिक अधिकारियों की जिम्मेदारी है। ऐसे मामलों में त्वरित कार्रवाई और सामाजिक जागरूकता बेहद जरूरी है।

विशेषज्ञों का कहना है कि इस तरह के कृत्यों के पीछे मानसिक और सामाजिक कारण भी हो सकते हैं। हालांकि, दोषियों को जल्द से जल्द पकड़ना और उन्हें कड़ी सजा देना इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए सबसे प्रभावी कदम होगा।

इस घटना ने एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि समाज और प्रशासन को मानवता की सुरक्षा के लिए सतर्क रहना चाहिए और बच्चों की सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी होगी।

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